संसार में शिशु जनम लते ही रोने लगते हैं, और माँ उन्हें अपना दूध पिलाकर शांत करती है । जन्म लेते ही इनसान के साथ ही भूख का भी जन्म होता है और ये इनसान के मरते दम तक उसका साथ नहीं छोड़ता है । यह भूख हमारे जीवन का अभिन्न अंग है और निरंतर भूख की तृप्ति से ही जीवों का जीवन बना रहता है । अतः भूख हमारा जीवन आधार है ।
जैसे जैसे इनसान बड़ा होता जाता है, उसकी दूसरी भूख का भी जन्म होता है और वह है जिज्ञासा, जानने और समझने की भूख। वह आसपास की चीजों को अपने नन्हे नन्हे हाथों से छूता है , मुँह से पकड़ता है, उसे समझने की कोशिश करता है । हम जो बोलते हैं, हरकतें करते हैं , वह उसे धीरे-धीरे सीखने और समझने की कोशिश करता है । जब वह बोलने और चलने लगता है, तो हर रोज नयी नयी हरकतें करते हुए, वह नयी नयी चीजें सीखता रहता है । पाँच साल से बीस साल की उम्र तक वह एक परिपक्व समझदार और जिम्मेदार नागरिक बन जाता है । इसी बीच उनकी अलग अलग भूख का भी जन्म होता है । ये भूख है स्वाद, गंध, स्पर्श, रूप सौन्दर्य, संगीत, लालच, मद, निन्दा, घृणा, द्वेष, दया, क्षमा, और आत्मज्ञान व आध्यात्मिक चिंतन का ।
जो इनसान लालच, निन्दा, घृणा, द्वेष और मद आदि भूख में उलझ जाता है, उनका जीवन नरक हो जाता है । वह परिवार और समाज के लिये कोढ़ हो जाता है । अपने साथ साथ अपने परिवार को भी नरक में धकेल देता है ।
दूसरी तरफ जिसकी भूख स्वाद गंध स्पर्श और रूप सौन्दर्य में उलझ जाती है, वह संसारिक मोह माया में फँसकर संसारी गृहस्थी की गाड़ी खीचते हुए सारा जीवन बिता देते हैं और यही वो समुदाय है जिसके चलते श्रृष्टि का अनवरत सिलसिला चलता रहता है ।
तीसरी तरफ जिसकी भूख संगीत, दया, क्षमा और आत्मज्ञान व आध्यात्मिक चिंतन की हो जाती है, वह संसार में रहते हुए भी अपने सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए, संसार के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों में से एक हो जाते हैं।
अतः आप अपने भूख पर नियंत्रण कर स्वयं को संसार के लिये समर्पित करें और अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करें ।
जयहिन्द जयभारत वन्देमातरम ।
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