चौत्रृषि संतान हैं हम हब, कुल वंश से ब्राह्मण हैं ।
हुआ कालान्तर में कुछ ऐसा, ब्राह्मण हो गया वैश्य हमेशा।
करम धरम सब अभी वही है, पूजा विधि विधान वही है ।
खानपान और पहरावा भी, पूर्वज वाली शान वही है ।
गर्व हमें अपने पूर्वज पर, कर्मकांड भिक्षाटन छोड़ ।
अपनाकर स्वेच्छा से श्रम, चौत्रृषि चौरसिया बनकर ।
वैश्य धर्म अपना कर श्रीमन्, कर्म प्रधान श्रमशील जीवन ।
फैले चहुँ दिशा में श्रीमन्, नवजीवन जीने को जीवन ।
दिया दान मंदिर द्वारे हम, बहुत किया उनका सम्मान ।
बदलें उस नियम बंधन को, दान करें अपने समाज को।
मदद करें हम लाचारों को, मेधावी कर्मठ बालक को ।
धनाभाव में छोड़ पढ़ाई, करते खेती मजदूरी वो।
दिशा हीन हो भटके बालक, शिक्षित बेरोजगारी में ।
सही दिशा देकर हम उनको, जीवन पथ पर बढ़ने में ।
शादी व्याह में दान दहेज का, खुलकर आप विरोध करें ।
स्वेच्छा से गर दान मिले तो, खुशी खुशी घर ले जायें ।
हमें हमारा भी हो अपना, राज्य राष्ट्र के स्तर पर ।
एक संगठन एक सहारा, एक नेता के संबल पर।
सिक्ख जैनियों के भांति ही, योग्य सत्यनिष्ठ कर्मयोगी ।
कर्णधार महामानव वह, जाति समाज के सहयोगी।
अंशदान प्रतिमाह हमारा, बूंद बूंद सागर बनकर ।
लाखों जन का संबल बनकर, चौत्रृषि समाज का हितकर।
हो कल्याण इस गिरे समाज का, राज्य राष्ट्र के स्तर पर ।
बने पहचान हमारी अपनी, नाम चौरसिया से जुड़कर ।
आगे पीछे नाम में जोड़े, चौरसिया उपनाम अपनाकर ।
बिन बदले ही नाम को अपना, जोड़े चौरसिया उपनाम ।
एका होगी हममें अपनी, मिलेगी हर हाथों से हाथ ।
राष्ट्र स्तर पर अपनी होगी, चौरसिया अपनी पहचान ।
अभी नहीं पहचान हमारी, अलग-अलग अपना उपनाम ।
नहीं हैं संख्या में हम कमतर, नहीं और लोगों से अनपढ़ ।
एका नहीं हमारी अपनी, नाम और उपनाम से हटकर ।
आयें मिलकर सपथ धरें हम, चौरसिया हम सब मिलकर ।
पशु पक्षी फल फूल समेत,चंदा के संग तारे रहकर।
चौत्रृषि संतान हैं हम सब , बंटकर क्यों कर रहते हम।
अलग अलग उपनामों में, क्यों टुकड़े टुकड़े रहते हम।
करे सुरेश विनती सब जन से, बच्चे युवक बृद्ध सज्जन से।
बढ़ आगे हम कदम उठायें, चौरसिया की ध्वज लहरायें ।
चौरसिया का मान बढ़ायें, चौरसिया का मान बढ़ायें।
जयहिन्द जयभारत वन्देमातरम ।
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