पुराने स्वेटर की वेदना सुन,
आखें हमारी भर आयी है ।
बक्से में पड़े पड़े दम घुटता है,
बाहर निकालें किसी का काम आऊँ।
बुजुर्ग माता-पिता के अरमान,
बच्चों ने कुचल कर रख दी है।
तप तप कर जला था जिसे संवारने में,
वही आज तिल तिल कर जला रहा है।
रोटी पानी के लिये तरसा दिया है,
बुढ़ापे में चारपाई पर सिमट गया।
सहारा के बिना उठ नहीं पाता,
और सहारे के लिये तरस गया।
लाख कमाया था दौलत हमने,
सब लूट ले गया हमारा अपना ही।
फरियाद किससे करूँ मैं,
तन के टुकड़ों को सजा देने की।
दुआ सुरेश करता है अपने खुदा से,
सूकून से दुनिया छोड़ने की।
खुश रक्खें उस ना शुक्रे को,
जो माँ बाप का दिल दुखाया है।
पुराने जरूर हो गये हैं हम,
फिर भी अनमोल हैं हम।
फिर भी अनमोल हैं हम।
फिर भी अनमोल हैं हम।
जयहिन्द जयभारत वन्देमातरम
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