हर किसी का अपना दिन, खुशी व गम में ही गुजरती है।
कोई रोकर गुजार लते हैं, तो हॅसकर बिता लेते हैं।
क्यों गम में दुखी हो सुरेश, ये तो बादल हैं छट जायेगा।
ये शहर करम करने के लिए है, सोचने से परेशान क्यों होते हो।
बात उनकी भी सोचो सुरेश, जो मखमली सेज पर भी।
रो रो कर परेशान होते हैं, छतीचसो प्रकार के भोग सामने हैं।
पर खाने को तरस जाते हैं, बिना नमक की खिचड़ी ही खाते हैं।
खुदा का शुक्र है सुरेश, मेहनत कश जन्नत में रहते हैं।
मेहनत कश जन्नत में रहते हैं। जन्नत में रहते हैं।
जयहिन्द जयभारत वन्देमातरम।
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