आफिस से लौट घर में पैर रखते ही शुकून और खुशी का अहसास होता है। जिस घर में एक कुशल गृहणी रहती हैं। साफ़ सुथरा घर, धुले धुलाये कपड़े, करीने से सजे सजाइए सामान, चहकते फुदकते बच्चे, घर की मंदिर से फैलती अगरबत्ती की खुशबू, रसोई से आती सोधी सोधी महक, बैठक में इन्तज़ार करती मुस्कुराती सजी सवरी पत्नी। दिन भर की भागा दौड़ी , बास की डांट क्षणभर में ही सब भूल , मन खुशियों से भर जाता है।
कौन कहता है कि घरेलू महिला दिन भर बेकार बैठी गप्पें हांकती रहती हैं? सुबह-सुबह पति और बच्चों को आफिस तथा स्कूल भेजकर, लग जाती हैं घर सवारने। साफ़ सफ़ाई से लेकर कपड़ों की मरम्मत, बिटिया के लिए नयी नयी फ्रांक सिलना, नमकीन और मिठाई बनाना, सास ससुर और रिश्तेदारों की सेवा आवभगत। हर मौसम में अचार डालना, कभी आम की, तो कभी मिर्ची की, बेमौसम में सब्जियों की मिक्स मसाले दार अचार जो हम हाथ चाट चाट कर खाते हैं। तीज त्यौहार पर तरह तरह के पकमान और स्वादिष्ट भोजन बना कर सबको खिलाना। क्या ये सब काम नहीं है? अगर सचमुच में इनके काम की मजदूरी दी जाए तो एक मध्यवर्गीय परिवार की कमाई कम पड़ जायेगी। सच तो यह भी है कि घरेलू महिला की ड्यूटी सातो दिन, बारहो महीने और चौबीसों घंटे की रहती हैं। उनको उनके पूरे जीवन काल में एक दिन की भी छुट्टी नहीं मिलती है। फिर भी हम ताना देते हैं कि दिनभर करती क्या हो? इसीलिये किा शायद वह महीने के अंत में वेतन लेकर घर नहीं आती हैं। पर क्या वह घर में रहते हुए हमसे कम कमाती है? यह हम पुरुषों की ग़लत फहमी और स्त्री जाति का अपमान है।
आयें हम सब अपना सोच बदलें और उन्हें उनका सम्मान दें, जिनका वो अधिकारी हैं। परिवार और समाज में महिलाओं के योग दान को कभी भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। वे गाड़ी के दो पहिये में से एक हैं। जैसे गाड़ी के दोनों पहियों का समान रूप से एक तरह होना जरूरी है, वैसे ही समाज में पुरुष और महिला का।
जयहिन्द जयभारत वन्देमातरम।
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