सच कह रही हो सखी तुम , मौसम बारिश का बड़ा छलिया होता है।
मन में गुदगुदी दिल में उमंग होती है, पिया मिलन की आस होती है।
जब दूर होते हैं परदेशी पिया, पापी मन मेरा भी तड़पता है।
रिमझिम रिमझिम बारिश की फुहार, बदन में लगाती हैं आग।
सजना जब साथ साथ होते हैं, आग लग जाती है बदन में।
सुनकर उनकी फ़रमाइश, गरमा गरम खाने को।
बनाने कहते जब चटपटी चटनी,
तलने को मजबूर करते हैं पकौड़ी।
मजे लेते हैं खुद बारिश का, डाल कुर्सी बालकनी में।
खाते रहते हैं पकौड़ी चटनी के साथ,
और हम तलते रहते अंदर कीचन में।
वही पकौड़ी उनके लिये, तब कोफ्त और घुटन होती है मुझे।
इस निगोड़ी बारिश से, क्यों बरसती है झमाझम।
सखी हम नारियों की यही व्यथा है, हमारी मन की कोई नहीं सुनता है।
चाहे ये निगोड़ी बारिश हो , या हमारा प्यारा बलमा।
मन कुढ़ता जलता है सखी, बारिश में मन मेरा भी मचलता है सखी ।
बचपन में भींगा करते थे, कागज की कश्ती से खेला करते थे।
गीले कपड़ो में जब घर आते थे, माँ की डांट और पिता की घुड़की।
आज भी याद आती है, बारिश में मचलना धूम माचना।
सखी सहेलियों के संग, धक्का मुक्की कर पानी में फिसलना।
आज अपनी बिटिया को देखती हूँ, बारिश में उछलते कूदते।
अपना भी बचपन याद आता है,
बारिश में उछल कूद करना, सखी याद आता है।
निगोड़ी बारिश में मन मेरा भी मचलता है। मन मेरा भी मचलता है।
जयहिन्द जयभारत वन्देमातरम।
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