चाह नहीं है अब कुछ पाने की, जी ली मैंने पूरा जीवन।
अपना जीवन सुख से जीया, नहीं कोई अफसोस रहा।
सुन्दर पत्नी चंचल बिटिया,बेटा काबिल मैं पाया।
भरा पूरा संसार हमारा, ईश्वर हमें संवारा है।
देश परदेश बहुत हम घूमे, अपना देश ही प्यारा है।
दिल्ली देखा पूना देखा, कानपुर और बरेली देखा।
भुज जोधपुर बाड़मेर देखा, जामनगर लखनऊ देखा।
कलकत्ता नासिक पटना देखा, आदमपुर अंबाला देखा।
पठानकोट जम्मू भी देखा, श्रीनगर कश्मीर देखा।
काशी देखा बनारस देखा, इलाहाबाद हलबारा देखा।
अहमदाबाद आबू भी देखा, बंगलोर देखा जयपुर देखा।
लंदन पेरिस इटली देखा, मिश्र कुवैत और दुबई भी।
हाँगकाँग अमरीका देखा, देश मेक्सिको बीच गया।
तरह तरह का व्यंजन खाया, ख़ालिस भेज व नौनभेज भी।
जैपनीज खाया इटालियन खाया, खाया डिश मैक्सिकन भी।
जीभर के चायनिज भी खाया, थाई डिश खायी मैंने।
स्वाद न पाया मैंने वैसा,अपने घर के खाने जैसा।
माँ के हाथों बना बनाया, खाना खाया बचपन में।
पूरा जीवन खाना खाया, बना-बनाया अपने घर में।
पत्नी रोज बनाती भोजन, प्यार प्रेम व तनमन से।
पूरी खीर की स्वाद निराली, छोले और भटूरे की।
सब्जी मिक्स मसाले वाली, आलू गोभी बैगन की।
मटर पनीर की सब्जी बनती, चाट मसाले वाली भी।
रोटी और पराठे उसकी, गोल गोल पतली पतली।
गोलगप्पे जब कभी खिलाती, कभी न मन भर पाती है।
पनीर पकौड़ी चटनी उसकी, ढोकला तो सरताज है।
उँगली चाट चाट हम खाते, मीठे की क्या बात है।
लड्डू नारियल वाली उसकी, नमकीन भी सौग़ात है।
चटक अचार बनाये घर में, आम और कटहल वाली।
सौस बनाये जाम बनाये, नीमकी वो नींबू वाली।
खूब खिलायी जीवन भर वह, बात नहीं भूलने वाली।
और नहीं है चाह हमारी, देश परदेश घूमने फिरने की।
सत्तर पार हुए हैं फिर भी, सिर्फ खाने की चाह रही।
सारा जीवन सुख से जीया, और नहीं अब चाह रही।
सारा जीवन सुख से जीया, और नहीं अब चाह रही।
जयहिन्द जयभारत वन्देमातरम।
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