साल तैतालिस बीत गयी है, साथ साथ मिल रहने का।
पाँच मई सन चौहत्तर को, साथ मिला था साथी का।
सताईस साल थी उमर हमारी, सतरह की वो आयी थी।
रूप रंग की गोरी छोरी, नयन नक्श क्या पायी थी।
पायल की संगीत सदा ही, घर में गूंजा करती थी।
बात बात में जोर जोर से, हँसी बिखेरा करती थी।
हँसते गाते चार साल यों, बीत गया कैसे दिन वो।
एक साथ सौगात ले आयी, दो परियों को रानी वो।
प्यार हमारा और बढ़ गया, तीन बरस ऐसे ही चल गया।
घर को रौशन करने आया, बहना का भाई जो आया।
हो गया था पूरा परिवार, बेटा बेटी घर संसार।
बच्चों की दुनियां में खो गये, उनकी ही सेवा में रह गये।
भूल गया था अपने को भी, पढ़ लिख कर वो बड़े हो गये।
आज न उनकी चिंता हमको, वे सब रहते अपने घर में।
हम भी अब आजाद पंछी हैं, रहते हम अपने इस घर में।
बेटा बेटी नाती नातिन से, भरा हुआ है घर अपना।
खुशियाँ ही खुशियाँ है घर में, महफिल भी है याराना।
आज आप सब आये मिलने, घर में देवों का आना।
स्वागत है सब यारों का, आप सबों का घर आना।
मिले आप सब की शुभकामना, और नहीं कुछ है कहना।
और नहीं कुछ है कहना।
जयहिंद, जयभारत, वन्देमातरम।
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