Monthly Archives: September 2016

दुखियारी माँ                             दुखियारी माँ एक विधवा माँ अपने इकलौते बेटे के साथ रह रही थी। माँ ने बेटे को मजदूरी कर पढाया लिखाया। बेटे ने भी मन लगा कर मेहनत किया और बी ए पास कर सरकारी नौकरी में लग गया। नौकरी लगते ही परिवार में खुशहाली आ गयी। माँ अब मजदूरी छोड़ दी। बेटे ने माँ को सब तरह से आराम और खुशियाँ दी। दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बेटे में माँ का जीवन था और माँ में बेटे का।        माँ ने अपने जवान बेटे की शादी एक पढी लिखी सुन्दर लड़की से कर दी। कुछ वर्षों तक सब ठीक ठाक चलता रहा। माँ अब बूढी हो चुकी थी। वह बीमार भी रहने लगी। बेटा तो नौकरी पर बाहर निकल जाता था, पर बहू घर पर सास को परेशान करने लगी। वह उसे समय पर भोजन पानी नहीं देती थी, लेकिन जब बेटा घर वापस आ कर माँ से हाल चाल पूछता, तो वह बहू की खूब प्रशंसा करती और कभी भी अपने अपमान और निरादर की शिकायत नहीं करती थी।        समय गुजरता गया, माँ अब चलने फिरने से भी लाचार हो गयी थी। एक दिन उसका बेटा आफिस से जल्दी घर आ गया, जैसे ही वह दरवाजे पर पहुँचा, अंदर पत्नी की कर्कश आवाज से चौंक गया, वह सास को भला बुरा कह रही थी और वह हाथ जोड़कर बहु से मिन्नतें कर रही थी। वह बहू से प्यार भरे लहजे में कह रही थी कि वह अब कुछ ही दिनों की मेहमान है, उसे खाना पीना भी नहीं चाहिए, पर सुकून से भगवान का नाम लेते हुए मरने दे। बेटा माँ के दुख से बहुत दुखी हुआ, वह धीरे से दरवाजे पर दस्तक दी। पत्नी ने दरवाजा खोला, पति को सामने देखकर परेशान हो गयी, पर वह अनजान ही बना रहा और तबियत खराब है, बहाना बना कर माँ के पास जाकर बैठ गया।      दूसरे दिन आफिस में छुट्टी का दरखास्त भेजकर घर पर ही रहने लगा। वह रोज समय पर माँ को रोटी पानी देता, उसकी सेवा करता। पत्नी को भनक भी नहीं लगने दिया कि वह सब कुछ जानता है। माँ ने भी उसे कभी नहीं बताया कि बहू उससे बुरा व्यवहार करती थी। माँ बेटे की सेवा से खुश थी।एक दिन वह बेटे के साथ भगवत भजन कर रही थी कि अचानक उसे दिल का दौरा पड़ा और वह  बेटे की बाहों में ही दम तोड़ दिया। बेटे ने अपनी माँ को अंतिम समय में जो सुख दिया वह अनुकरणीय है। वह अपने घर को भी टूटने से भी बचा लिया। माँ के मरने के बाद वो पति पत्नी सुखपूर्वक जीते रहे। पत्नी को अपनी गलती का एहसास हो चुका था, वह जब तक रही, जीवन घुट घुट कर जीते रही और एक दिन सचमुच ही उसने अपनी गलती पति से कबूल कर ली, पति ने उसे दुस्वप्न जानकर मांफ कर दिया। ईश्वर करे हर माँ को ऐसा ही बेटा दे।         जयहिंद जयभारत वन्देमातरम।

माँ की महिमा 

जब आंख खुली तो अम्‍मा की,गोदी का एक सहारा था।

उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको,भूमण्‍डल से प्‍यारा था।

उसके चेहरे की झलक देख,चेहरा फूलों सा खिलता था।

उसके स्‍तन की एक बूंद से,मुझको जीवन मिलता था।

हाथों से बालों को नोंचा,पैरों से खूब प्रहार किया।

फिर भी उस मां ने पुचकारा,हमको जी भर के प्‍यार किया।

मैं उसका राजा बेटा था, वो आंख का तारा कहती थी।

मैं बनूं बुढापे में उसका,बस एक सहारा कहती थी।

उंगली को पकड. चलाया था,पढने विद्यालय भेजा था।

मेरी नादानी को भी निज,अन्‍तर में सदा सहेजा था।

मेरे सारे प्रश्‍नों का वो, फौरन जवाब बन जाती थी।

मेरी राहों के कांटे चुन,वो खुद गुलाब बन जाती थी।

मैं बडा हुआ तो कॉलेज से,इक रोग प्‍यार का ले आया।

जिस दिल में मां की मूरत थी,वो रामकली को दे आया।

शादी की पति से बाप बना,अपने रिश्‍तों में झूल गया।

अब करवाचौथ मनाता हूं,मां की ममता को भूल गया।

हम भूल गये उसकी ममता,मेरे जीवन की थाती थी।

हम भूल गये अपना जीवन,वो अमृत वाली छाती थी।

हम भूल गये वो खुद भूखी,रह करके हमें खिलाती थी

हमको सूखा बिस्‍तर देकर,खुद गीले में सो जाती थी।

हम भूल गये उसने ही तो, होठों को भाषा सिखलायी थी।

मेरी नीदों के लिए रात भर,उसने लोरी गायी थी।

हम भूल गये हर गलती पर,उसने डांटा समझाया था।

बच जाउं बुरी नजरों से,काला टीका हमें लगाया था।

हम बडे हुए तो ममता वाले,सारे बन्‍धन तोड. आए।

बंगले में कुत्‍ते पाल लिए,मां को वृद्धाश्रम छोड आए।

उसके सपनों का महल गिरा कर,कंकर-कंकर बीन लिए।

खुदग़र्जी में उसके सुहाग के,आभूषण तक छीन लिए।

हम मां को घर के बंटवारे की,अभिलाषा तक ले आए।

उसको पावन मंदिर से,गाली की भाषा तक ले आए।

मां की ममता को देख मौत भी,आगे से हट जाती है।

गर मां अपमानित होती,धरती की छाती फट जाती है।

घर को पूरा जीवन देकर,बेचारी मां क्‍या पाती है।

रूखा सूखा खा लेती है,पानी पीकर सो जाती है।

जो मां जैसी देवी घर के,मंदिर में नहीं रख सकते हैं।

वो लाखों पुण्‍य भले कर लें,इंसान नहीं बन सकते हैं।

मां जिसको भी जल दे देवो, पौधा संदल बन जाता है।

मां के चरणों को छू पानी,गंगाजल ही बन जाता है।

मां के आंचल ने युगों-युगों से,भगवानों को पाला है।

मां के चरणों में जन्‍नत है,गिरिजाघर और शिवाला है।

हर घर में मां की पूजा हो,ऐसा संकल्‍प उठाता हूं।

मैं दुनियां की हर माता के,चरणों में ये शीश झुकाता हूं।

चरणों में शीश झुकाता हूं।   

जयहिंद जयभारत वन्देमातरम। 

खूबसूरत जिन्दगी 

इस खूबसूरत सी जिन्दगी को, 

नरक क्यों कर बनाया है तुमने। 

जिम्मेदारी उठाने की ताकत नहीं थी, 

तो शादी बनाया ही क्यों तुमने। 

पति पत्नी और ये बच्चे, 

संसार के खूबसूरत फूल हैं। 

उनकी खुशियाँ ही तो है,

जीने की चाहत इस सफर में। 

जिसे तुम बोझ कहते हो, 

तो उस बोझ को क्यों उठाया तुमने। 

जी ले हर पल खुशी से,

ये जिन्दगी तो हसीन है। 

दुख में भी खुशियाँ तलाश कर,

ये जिन्दगी तो बेहतरीन है। 

गुलाब में भी कांटे होते हैं, 

पर वही  है फूलों का राजा भी। 

बच्चे तुम्हारी बगिया के फूल हैं,

उसे कभी कुम्हलाने न दें। 

जिंदगी को शान से जीयें,

यों कभी मायूस न रहें। 

अपने परिवार की फुलवारी को,

फूलों सी महकाते रहें। 

फूलों सी महकाते रहें। 

 जयहिंद जयभारत वन्देमातरम। 

हक लेना नहीं है हक मिलना है 

राज छोड़ वन राम गये थे, पिता वचन के पालन में। 

राज लोभ में अंधे कौरव, वनवासी पांडव वन में।

 धन के लोभी बच्चे घर में, माता पिता हैं आश्रम में।

हक तो है सब कुछ बच्चों का, माता पिता के मरने पर।

पर जीते जी मारके उनको, हक जताते हैं उनपर। 

कैसे सुख आये समाज में, अकल आये इन बच्चों में। 

राम अगर फिर आये जग में,सदबुद्धि लाये बच्चों में। 

आश बँधी है भैया हमको, एक दिन ऐसा आएगा। 

माँ बाप सुखी अपने ही घर में, बच्चों से सुख  पायेगा। 

वो बच्चों से सुख पायेगा। 

जयहिंद जयभारत वन्देमातरम।

  जाटनी 

एक जाटनी देखा भैया, छैल छबीली अलबेली।

गाँव में घूँघट काढे रहती, शहर में डोले अलबेली। 

जीन्स टाप में बन ठन घूमे, ऊंची हील्स की सैन्डल डाल। 

मक्के की रोटी संग सरसों, साक खाने होटल के हांल। 

भूल गयी है गाँव की रीति, भूली वो अपनी पहचान। 

सैंया संग रहने आयी है, बड़े शहर जो है अनजान। 

देख सिनेमा लौटी घर को,सासर खड़े मिले जो द्वार। 

सासरे ने छोड़े पहचानो,डटकर देदी उसे फटकार। 

 बता ये छोड़ी कौन है छोड़े,क्यों आयी है तेरे साथ। 

कहाँ है म्हारी घर की दुलहन, काहे नहीं वो तेरे साथ। 

 बापू तेरे पैर पड़ूं सूं, घर के अंदर आयें आप। 

डर डर के छोड़ा बापू को, लगा बताने अपने आप। 

तब तक जटनी रूप बदल कर, पाँव पड़ी वो सासरे की। 

जाट सासरा हँसते हँसते, बोले वचन बहुरिया री 

तेने तो मुझे खूब डरायो,  सोचूँ मेरा छोड़ा लुट गया। 

कैसी नटनी छोड़ी संग में,  मेरा अपना छोड़ा फस गया। 

सुखी बहुरिया तुम सब रहना,गांव में जाटनी सी ही आना। 

शहर की गोरी शहर ही भावे, गांव में शहरी मत बन आना।

गाँव में शहरी मत बन आना, बापू की तू लाज बचाना।

जाट जाटनी गाँव की शोभा, बापू की तू लाज बचाना। 

जयहिंद जयभारत वन्देमातरम। 

Memorable duty 

I was posted at barely Air force station from 1996 to 1999 , I was i/c duty crew. One day at 1100 am I was called by the section cmdr,he asked me to go to Pant Nagar and survey the landing facilities available for VIP A/C,A special Helicopter was sent from 111 unit to carry me to Pant Nagar. It was a pride moment for me, I was flying with pilot alone on board. 

          We landed at Pant Nagar Air field, I. went to ATC and asked the officials about the facilities available to receive VIP A/C, as our PM Gujral was to visit Pant Nagar for convocational address in the University. They told me that we don’t have any facilities in the Air Base, no VIP ladder, no trained manpower, only this ATC is here, even we don’t have refuelling facilities on the base,we only maintain the Airport and assist the Pilot for landing and take off. 

              We came back and narrated the whole story to our section cmdr. This was conveyed to the Base Cmdr. Next day I was detailed at 1230pm by Chief Engineer of the Base at Barely and tasked to receive PM next day, I was given only one assistent, where as at Barely Air force station this drill was done with 06 assistant, apart from this I was to take VIP Ladder and red carpet from Base, there was no time for me to approach Base Cmdr to tell the problems, no moment order was issued to me for going to out station on duty, only a new flying offr. was detailed as I/c party, who was just posted after training, he was not aware of the task, only he came there as a class one offr. 

            A three tonner was sent to section with one MT duty machanic and the driver. I loaded the VIP Ladder and red carpet, took the required tools with me, went back to my family quarter, took my lunch and took a set of neat and clean uniform and my daily personal kits. All the five members boarded in the same 3 tonner and set off for Pant Nagar at about 0330 pm, reached there at 0730 pm.

           It was dark, no ram was available near by, it was an herculean task to unload the Ladder, I was in uniform, my name plate was on the left chest pocket, seeing me struggling, one of Army Subedar came and said me, Mr Mandal don’t worry what for we are here? He called his 08 jawaan and order them to unload the Ladder safely taking instructions from me. It was unloaded safely. I was relieved, I put on my cap and gone to ATC office, where district collector was supervising the whole drill, I saluted him and told him about my task, he immediately called his one of the assistant and instructed him to give all necessary support he requires, and asked me whether I was provided accommodation or not, I told him sir I have landed only hour back and after unloading the Ladder came to meet you, he told his assistant to provide us best available accommodation for all five members at one place and provide transport , I thanked him and told, sir we have our own transport we need only accommodation and 07 men to push and pul the VIP Ladder, 07 men were provided to me  for next day, I instructed them to come to the Airport well dressed, We’re provided best accommodation in three bedrooms set with comfortable beds and bedding. Dinner was served to us, it was better than six star hotel, hot chapatti with butter, three variety of vegetables, full cream curd with sugar and salt, basmati rice, plenty of ghee, dal fried, muter panir, unlimited quantity of all the items were kept on the dining table. Last the sweet tashmay prepared in pure milk with basmati rice, and white langra and dasahri mango, before sleeping hot pure milk with lots of butter. Next morning bed tea prepared only in milk and delicious breakfast with tea and coffee were served, we were really delighted to have this type of reception. 

             After breakfast we came back to airport, all the seven men were waiting for me well dressed, I prepared the VIP LADDER with red carpet on and positioned it near the receiving point. PM A/C came in time, I received him, which was not expected by the VIP crew in a small Airport, they thanked me. Nearly after three hours PM came back and I seen him off, loaded back the Ladder in three tonner, came back to accommodation, had the royal lunch and departed from there to our base, reached in the night, submitted the full details to section cmd.next day. It was appreciated by base cmdr, my devotion to the duties, responsibilities and the capability was much appreciated. 

           After more than 17yrs of this great moment and 11yrs of my retirement, I still remember those days and I am proud of being a part of the great INDIAN AIRFORCE, where I spent more than 33 yrs and enjoyed the life, to day I am a happy person living with dignity only because I was and I am attached with this great INDIAN AIRFORCE. 

            Jaihind jaibharat vandematram. 

अमानत 

​दत्ता जी आजतक दुनिया यही तो नहीं समझ पायी है, कि हम और हमारे कोई भी हमारा नहीं है, ये तो किसी न किसी की अमानत है। जिस दिन हमें ये समझ में आ जायेगी हम सब खुशहाल जीवन जीने लगेंगे। अमानत तो लौटाने के लिए ही होता है, फिर इससे इतना लगाव क्यों? यह हाड़ मांस की काया भी तो उस परमपिता परमात्मा की अमानत है, जैसा उसने हमें दिया है वैसे ही उन्हें लौटाना है। छलकपट बिहीन आया था संसार में, कपटी बनकर रह गया, क्या यही कपटी तन उन्हें लौटायेगे? अभी भी समय है, चेत जायें, उनके चरणों में समर्पित होकर, उन्हें कुछ पल याद कर, उनके बनाए सृष्टि का सम्मान करते हुए, सबों से प्रेम करते हुए, शेष जीवन जी लें।          

       जयहिंद जयभारत वन्देमातरम।

पंडित जी लाला जी 

सुभान अल्लाह, दत्ता जी ये रही न, जैसों को तैसे।

लाला भाई पंडित बन गए, गंगा जल अभिषेक से।

कीचन में लाला के चीकन, बने आलू अभिषेक से।

पंडित की पंडिताई रह गई, लाला के इस खेल से।

बरसों बरस पंडित पुरान ही, रखता सबका ध्यान था।

आज पुरानी पोथी रह गयी, लाला जी का मान था।

मुँह छुपाये पंडित भागे, अपनी हरकत से पछताये।

कैसे अपनी साख बचाये, लाला जी से जान बचाये।

भैया लाला जी से जान बचाये।
जयहिंद जयभारत वन्देमातरम।

संबंध और बंधन 

बंधन हमें बांधती है अपनों से,
संबंध हमें जोड़ती है अपनों से।
बंधन में सुख दुख का भाव होता है,
संबंध में सुख शांति का लगाव होता है।
बंधन संसार में दुखों का कारण है,
संबंध उन दुखों का निवारण है।
संबंध बढायें जीवन को सुखमय बनायें।

बंधन में बंध कर अपनो को नहीं खोयें।
जयहिंद जयभारत वन्देमातरम।

गुरु गोविंद 

​गुरु गोविंद दोनों बड़े, दोनों एक समान। 

गुरु नाम एक पंथ का, गुरु नहीं अनजान। 

गुरु की गुरुता कौन कहे, गुरु ठहरे भगवान। 

सद्गुरु मिले जो जग तरे,गोविंद को पहचान। 

गोविंद पार उतारे सागर, गुरु थामे पतवार। 

राम नाम की नैया भैया, गोविंद पालन हार।

मातु पिता ही प्रथम गुरु है, फिर दूजा संसार। 

गुरु की महिमा अपरम्पार, भैया महिमा अपरम्पार। 

गुरु की महिमा अपरम्पार। 

जयहिंद जयभारत वन्देमातरम।