अब मेरी बेटी थोड़ी सी, बड़ी हो गई है।
कुछ जिद्दी, कुछ नकचढ़ी हो गई है।
अब अपनी हर बात,मनवाने लगी है।
हमको ही अब वो, समझाने लगी है।
हर दिन नई नई फरमाइशें होती है।
लगता है कि फरमाइशों,की झड़ी लग गई है।
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है।
अगर डाटता हूँ, तो आखें दिखाती है।
खुद ही गुस्सा करके रूठ जाती है।
उसको मनाना बहुत मुश्किल होता है।
गुस्से में कभी पटाखा, कभी फूलझड़ी हो गई है।
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है।
जब वो हँसती है, तो मन को मोह लेती है।
घर के कोने कोने में,उसकी महक होती है।
कई बार उसके अजीब से,सवाल भी होते हैं।
बस अब तो वो जादू की छड़ी हो गई है।
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है।
घर आते ही दिल उसी को पुकारता है।
सपने सारे अब उसी के संवारता है।
दुनियाँ में उसको अलग पहचान दिलानी है।
मेरे कदम से कदम मिलाकर,वो खड़ी हो गई है।
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी होगई है।
बेटियाँ सब के नसीब में कहाँ होती है।
रब को जो घर पसंद आए,वहाँ होती है।
बोये जाते हैं बेटे, पर उग जाती है बेटियाँ।
खाद पानी बेटों को, पर लहराती हैं बेटियां।
स्कूल जाते हैं बेटे, पर पढ़ जाती हैं बेटियां।
मेहनत करते हैं बेटे, पर अव्वल आती हैं बेटियां।
रुलाते हैं जब खूब बेटे,तब हंसाती हैं बेटियां।
नाम करें न करें बेटे,पर नाम कमाती हैं बेटियां।
जब दर्द देते हैं बेटे, तब मरहम लगाती हैं बेटियां।
छोड़ जाते हैं जब बेटे,तो काम आती हैं बेटियां।
आशा रहती है बेटों से,पर पूर्ण करती हैं बेटियां।
सैकड़ों हजारों फरमाइश से, भरे हैं बेटे।
पर समय की नज़ाकत को, समझती है बेटियां।
बेटी को चांद जैसे, मत बना कर रखना।
कि कोई घूर घूर कर देखे उसको।
बेटी को सूरज जैसा बनाना, ताकि घूरने से पहले।
सब की नजर झुकजाये।सबकी नजर झुक जाये।।
जयहिंद जयभारत वन्देमातरम।
दोस्तों से सभार मिला है।
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