पिता

पिता को पिता से परमात्मा बना दिया है,
कविता में रस घोल कर एक पिता को रूला दिया है।
संयम का खंभा है पिता ,घर का पहरेदार है ।
पिता के साये में बच्चा अपने को सदा महफ़ूज़ पाता है ।
दुनियाँ में वह बेख़ौफ़ आगे बढ़ता है,
माँ की आँचल की छांव में वह कोमल होता है ।
पिता के बाँहों में वह निडर और कठोर होता है ।
माँ तो माँ होती है ,पर पिता के साथ जीवन पूर्ण होता है ।
जयहिंद ।

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