भारत एक कृषि प्रधान देश है,यहाँ की खेती छोटे छोटे किसानों द्वारा हल बैलों से की जाती है। पशु पालन भी किसानों का एक प्रमुख धन्धा है।गाय हमारे मुख्य पशु हैं,उन्हीं के बछड़े जब बड़े हो जाते हैं तो उन्हें हलों में जोत खेती किया जाता है,साथ ही सामान ढोने का भी काम भी इन्हीं बैलों से बैलगाड़ी द्वारा लिया जाता है।सदियों से यही यहाँ का प्रमुख रोज़गार बना हुआ है ।गाय बैल हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं।उनके बिना हमारा असतित्व ही नहीं है।यही कारण है कि हम इन्हें माँ की तरह पूजा करते हैं ।दूध ,दही ,घी,और खेतों के लिये कंमपोस्ट खाद,सब हमें इन्हीं से मिलता है ।जब तक गाय हमें बछड़े देती है ,हमें दूध ,दही और घी मिलता रहता है ।बैल जब तक जवान रहता है हमारे काम का रहता है ।पर जब ये बूढ़े हो जाते हैं ,तो वो फिर हमारे किसी काम के नहीं रह जाते हैं ।हमें इन्हें सिर्फ़ चारा खाना देना पड़ता है ,जो किसान को एक बोझ बन जाता है।जीवन भर वे हमारी सेवा करते आये हैं ,अत: हम उन्हें न भूखे रख सकते हैं न घर से दूर भगा सकते हैं।पर किसान को उन्हें रखना काफ़ी मंहगा पड़ता है ।कभी कभी कुछ किसान इस बोझ को नहीं उठा पाते हैं ,और इन पशुओं को वे आवारा छोड़ देते हैं।किसानों को इससे काफ़ी आर्थिक नुक़सान भी होता है।हमें और हमारी सरकार को इसका समुचित समाधान निकालने की ज़रूरत है ।
मेरा अपना विचार है कि इस समस्या के समाधान के लिये, हमें धर्म से अलग हट कर सोचना चाहिये ,धर्म और गाय का रिश्ता साथ साथ लेकर चलने पर समाधान ढूँढने में परेशानी होगी ।गाय को हिन्दू धर्म से इसलिये जोड़कर रक्खा गया है कि ,बिना गाय बैल के कृषि करना हमारे देश में संभव ही नहीं ,वरन असंभव भी है।पर अगर इनमें कुछ सुधार कर किसानों को इसे और लाभकर बनाया जाय तो किसान भी ख़ुश और समाज भी ख़ुश।कोई भी किसान अपने बूढ़े बैल और गायों को इसलिये भी नहीं बेचना चाहते हैं कि उन्हें उसका उचित मुल्य नहीं मिलता है।व्यापार की दृष्टि से अगर देखा जाय तो बूढ़े पशुओं की भी क़ीमत जवान पशु के बराबर ही है।पर व्यापारी सिर्फ़ अपना लाभ देखते हैं और किसानों की ग़रीबी का फ़ायदा उठाकर मिट्टी के भाव में उसे ले जाते हैं या फिर आवारा घुमते पशु को बेमोल उठा ले जाते हैं ।उनके तो दोनों ही हाथों में लड्डु है।अगर हम किसान और व्यापारियों के बीच एक सही ताल मेल बनायें,और दोनों के हित के बारे में विचार करें तो शायद हमारा रूढ़िवादी सोच में बदलाव आ सकता है और हम अपने किसानों को अधिक आय दे पायेंगे ।सरकार ये क़ानून बनाये कि वही पशु कसाई को बेचा जाय जो किसानों के काम का नहीं रह पाया है,बूढ़े और बाँझ पशु जो सिर्फ़ चारा खाना खाते हैं और दूध नहीं देते या हल में जुतने लायक नहीं रह गये हैं ।अगर ऐसा हो जाय तो किसानों को उनका भरपूर लाभ मिलेगा तथा दूसरे समुदाय को खाने के लिये पर्याप्त माँस ,चमड़ा उद्योग के लिये चमड़े ।न कहीं वैमनस्यता होगी ,न कहीं तनाव रहेगा ,आपस में भाईचारा बढ़ेगा देश में शांति रहेगी ।
पर इसके लिये सही माहौल बनाना होगा ,धर्म गुरुओं से प्रार्थना करनी होगी,किसानों को मनाना होगा ।चुनौतियाँ बड़ी हैं ,पर अगर बौद्ध जन शांति पूर्वक विचार करेंगे तो सब कुछ संभव है।सरकार को भी धैर्य पूर्वक आगे आना होगा ।समाज और देश को आज इसकी आवश्यकता है ,इसमें सभी की भलाई है,हमें उम्मीद है कि नेता गण भी इसे वोट बैंक से हट कर विचार करेंगे। मैं अंत में आपसे विनती कर अनुरोध करता हूँ कि ये मेरा अपना और सिर्फ़ अपना निजी विचार है ,मैं न किसी संगठन से जुड़ा हूं ,न नास्तिक हूँ और न तो किसी धर्म विशेष से हूँ ,मैं भी एक आम भारतीय हूँ और बहुसंख्यक समाज से हूँ,एक अदना सा किसान का बेटा और अवकाश प्राप्त फ़ौजी हूँ ।जयहिन्द,जय भारत ,वन्देमातरम ।
Recent Comments