ये ग़ज़लें लिखी थी तुम्हारे गुनगुनाने के लिये
ये कविता लिखी थी तुम्हें सुनाने के लिये
अपनी रूठी सनम को मनाने के लिये
अपनी ख़्वाबों की दुनियॉ बसाने के लिये
पर मुझे यह पता नहीं था,मेरे अब्बा ने जाल फैलाया था
तुम्हें ठुकराने के लिये,हमसे दूर भगाने के लिये
क्योंकि उन्हें नहीं मिल रहा था,लाखों की जायदाद
तुम्हारे घर वालों से ,मुझे भुनाने के लिये
मुझे तो पता भी तब चली,जब मेरी दुनियॉ उजड़ चुकी थी
तुम दुल्हन बन किसी और की हो चुकी थी
तब मेरी अम्माँ ने मुझे बहुत समझाया
चाँद सी दुल्हन मुझे दिखलाया
मेरी उजड़ी दुनियॉ बसाना चाहती थी
अपने सूने घर को सजाना चाहती थी
पर उसे क्या पता था,ये चमन उजड़ गयेहैं
समय से पहले ही वीरान हो गये हैं
ये बसंती बयार नहीं ,ये तो बिगरे तूफ़ान है
ये शीतल छांव नहीं,तपते रेगिस्तान है
मैं जी रहा था यही सोच कर,तुम ख़ुश होगी अपने चमन में
पर ये ख़ुशी भी न भायी उसे,जब उसने ये नाम दिया
तुम्हारे अपने अरमानों की ,उजड़ने का पैग़ाम दिया
मैं तनहा ही सही ,पर तुम्हारी यादें थी मेरे साथ
पर अब वह भी नहीं रही,सो दफ़्न करता हूँ तेरी यादों को
दफ़्न ख़ुद भी हो रहा हूँ,तुम्हारी यादें लिये
ये ग़ज़ले लिखी थी,तुम्हारे गुनगुनाने के लिये
ये कविता लिखी थी, तुम्हें सुनाने के लिये
अपनी रूठी सनम को मनाने के लिये , मनाने के लिये
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